सत्य न झुठलाएं
जो आदमी सत्य को झुठलाता है, वह घाटे में रहता है। सत्य को झुठलाने का परिणाम अच्छा नहीं होता। जब
सत्य का पता चलता है, तब
वह झूठ उसे ही सालने लगता है। असत्य की उत्पत्ति के चार कारण बताए गए हैं-क्रोध, लोभ, भय
और हास्य। आदमी झूठ नहीं बोलना चाहता। वाणी का असत्य भी नहीं चाहता, किन्तु
जब ये चार आवेश प्रबल होते हैं,
तब सच्चाई नीचे चली जाती है और असत्य उभरकर सामने आ जाता
है।
एक बार की बात है। विदेश कमाने गए पुत्र ने पिता को एक
अंगूठी भेजी। पत्र में उसने लिखा,
पिताजी! आपको मैं एक अंगूठी भेज रहा हूं। उसका मूल्य है
पांच हजार रूपया। सस्ते में मिल गई थी, इसलिए खरीद ली। अंगूठी पाकर पिता प्रसन्न हो गया।
पिता ने अंगूठी पहन ली। अंगूठी बहुत चमकदार और सुन्दर थी। बाजार में मित्र मिले।
नई अंगूठी को देखकर पूछा,
यह कहां से आई? उसने कहा, लड़के ने भेजी है। पांच हजार
रूपए लगे हैं। मित्र बोला,
क्या इसे बेचोगे? मैं पचास हजार दूंगा। उसने
सोचा, पांच
हजार की अंगूठी के पचास हजार मिल रहे हैं। इतने रूपयों में ऎसी दस आ जाएंगी।
उसने अंगूठी निकालकर दे दी और पचास हजार रूपए ले लिए।
पुत्र को पत्र लिखा, तुमने
शुभ मुहूर्त में अंगूठी भेजी। उसको मैंने पचास हजार रूपए में बेचकर पैंतालीस हजार
रूपए कमा लिए। लौटती डाक से पत्र आया, पिताजी! संकोच और भयवश मैंने सच्चाई नहीं लिखी
थी। वह अंगूठी एक लाख की थी। यह सत्य को झुठलाने का परिणाम था।
सिख:- जो आदमी
सत्य को झुठलाता है, वह
घाटे में रहता है।