हंस और मेंढक
एक बार एक हंस
एक समुद्र से उड़कर दूसरे समुद्र की ओर जा रहा था| वह रास्ते में थक कर एक कुएं
के किनारे बैठ गया| उस
कुएं के अंदर एक मेंढक रहता था|
उस मेंढक ने हंस को देखकर पूछा:-”
भाई! तुम कौन हो और कहां से आए हो?”
हंस ने जवाब दिया:-”
मैं समुद्र के किनारे रहने वाला एक पक्षी हूं और मोती चुनकर खाता हूं|”
तब मेंढक ने पूछा कि समुद्र कितना बड़ा है?
हंस ने कहा:- ‘बहुत बड़ा है|’
मेंढक ने थोड़ी दूर पीछे हट कर कहा कि इतना बड़ा होगा?
हंस ने कहा:-”
नहीं, बहुत
बड़ा|”
मेंढक ने थोड़ा सा चक्कर लगाकर पूछा:-‘ इतना बड़ा?’
हंस ने कहा कि समुद्र इससे भी कहीं बड़ा होता है|
तब मेंढक बोला:-”
तू झूठा है, बेईमान
है| इससे
बड़ा तो हो ही नहीं सकता|”
हंस ने सोचा कि इस मुर्ख को समझाने से अच्छा है कि यहां
से प्रस्थान किया जाए और हंस वहां से अपने मार्ग की ओर चल दिया|
सीख:- जो बात हमारी समझ से बाहर होती है उसको हम अक्सर
मानने के लिए तैयार नहीं होते हैं|