भय
सम्राट सिकन्दर ने एक दिगम्बर मुनि से कहा, तुम
मेरे राज्य में चलो। उसने कहा,
नहीं चलूंगा। सिकन्दर देखता रह गया। सिकन्दर की बात को
टालने की क्षमता बड़े-बड़े राजा-महाराजाओं में नहीं है। सिकन्दर का संकेत ही सबको
प्रकम्पित कर देता है, उस
स्थिति में एक अकिंचन साधु कह रहा है कि मैं नहीं जाऊंगा। बड़ा अजीब-सा लगा, देखता
रह गया।
सिकन्दर बोला, साधु तुम नहीं जानते मैं कौन हूं। सम्राट सिकन्दर
हूं। तुम्हें नहीं पता कि मेरे आदेश के अतिक्रमण का क्या परिणाम होता है। जानते हो? साधु
ने कहा, 'जानता
हूं, फिर
भी बता दो क्या परिणाम होता है।'
सिकन्दर ने कहा, यह है तलवार। परिणाम होगा, तुम
मारे जाओगे। साधु ने कहा,
किसको डराते हो? यह मौत का भय तो कभी का
समाप्त हो गया। मौत में मुझे मारने की क्षमता नहीं है। तुम मुझे मौत से डराते हो? क्या
मौत से मुझे डराना चाहते हो?
मौत तो मुझसे डर चुकी है। मुझे क्या मारना चाहोगे?
साधु की बात सुनी। सिकन्दर के हाथ से तलवार छूट गई। बोला, मेरे
पास जो अन्तिम साधन था मृत्यु का,
उसे तो वह स्वीकार ही नहीं कर रहा है, डर
ही नहीं रहा है। भला न डरने वाले को कैसे डराया जाए? दुनिया में ऎसी कोई शक्ति
नहीं जो अभय को डरा सके। सब डरने वाले को डराते हैं। आदमी भी डराता है और क्या, चूहा
भी डरा देता है। जो अभय बन गया,
भयमुक्त बन गया, उसे डराने की किसी में भी
ताकत नहीं होती। सिकन्दर परेशान हो गया और बोला, अच्छा महाराज! अभिवादन ; अब
जा रहा हूं। जिस व्यक्ति को बन्धन व वध का भय नहीं होता वह कभी भी बाहरी नियंत्रण
से नियंत्रित नहीं होता।
सिख:- जिस
व्यक्ति को बन्धन व वध का भय नहीं होता वह कभी भी बाहरी नियंत्रण से नियंत्रित
नहीं होता।