चींटी और टिड्डा
गर्मियों
के दिन थे। एक मैदान में एक टिड्डा अपनी ही मस्ती में झूम-झूम कर गाना गा रहा था।
तभी उधर से एक चींटी गुजरी। वह एक मक्के का दाना उठाकर अपने घर ले जा रही थी।
टिड्डे
ने उसे बुलाया और कहा, “चींटी रानी, चींटी रानी, कहाँ जा रही होघ? इतना अच्छा मौसम है… आओ बातें करें… मस्ती करें…”
चींटी ने
कहा, “टिड्डे भाई, मैं सर्दियों के लिए
भोजन इकट्ठा कर रही हूँ। बहुत काम पड़ा है… मुझे क्षमा कर दोए मैं बैठ नहीं
सकती।”
टिड्डे
ने फिर कहा,
“अरे! सर्दियों की चिंता
क्यों करती हो?
अभी तो
सर्दी आने में बहुत देर है…” पर चींटी मुस्कराकर चलती रही।
उसे अपना काम पूरा करना था।
शीघ्र ही
सर्दियाँ आ गईं। टिड्डे के पास खाने के लिए कुछ नहीं था जबकि चींटी अपने इकट्ठे
किए अनाज को आराम से बैठकर खा रही थी। टिड्डे को अब आभास हुआ कि कठिन दिनों के लिए
उसे भी पहले से ही तैयारी कर लेनी चाहिए थी।
सिख :- आज किए गए कार्य का फल आने वाले समय में मिलता है।