चमगादड़, पक्षी और पशु
एक बार
पशुओं और पक्षियों के बीच में किसी बात को लेकर अनबन हो गई। युद्ध की ठन गई। दोनों
ओर की सेना इकट्ठी हो गईं। चमगादड़
बेचारा परेशान…
वह समझ ही
नहीं पा रहा था कि किसकी ओर जाए। उसे सोच में पड़ा देखकर पक्षियों ने आमंत्रित
करते हुए कहा,
“हमारे साथ आ जाओ”चमगादड़ ने उत्तर दिया, “अरे भाई, मैं तो पशु हूँ।”
पशुओं ने
उसे अकेला देखा तो अपनी ओर आने के लिए कहा। चमगादड़ ने कहा, “मैं तो पक्षी हूँ।”सौभाग्य से दोनों
पक्षों में अनबन समाप्त हो गई और युद्ध नहीं हुआ। दोनों पक्षों में दोस्ती हो गई। चमगादड़
अब पक्षियों के दल के पास गया पर उन्होंने उसे अपने दल में लेने से मना कर दिया।
हारकर वह पशुओं के पास पहुँचा तो उन्होंने भी नहीं स्वीकारा। उसने समझ
लिया कि आवश्यकता पड़ने पर साथ नहीं देने से कोई भी मित्र नहीं रहता है। उसके बाद
से ही चमगादड़ अकेले रहने पर मजबूर हो गया।
शिक्षा
: समय पर साथ नहीं देने पर कोई मित्र नहीं होता।