⚜️भिक्षा कटोरा⚜️
"महल के फाटकों पर बहुत बवाल हुआ। लगभग पूरा शहर था। हालात कुछ ऐसे थे।
उस दिन सुबह-सुबह एक साधु राजा के महल में भिक्षा मांगने आया। राजा ने कहा, तुम आज के पहले भिखारी हो। आपको जो चाहिए, उसे मांगें। भिखारी ने कहा, मेरा भिक्षा कटोरा बहुत छोटा है। इसमें जितनी भिक्षा होगी, वह मेरे लिए काफी है। लेकिन, वादा करने से पहले सोचें। क्या आप कर सकते हैं?
साधु के हाथ में भिक्षा का बहुत छोटा कटोरा देखकर राजा मुस्कुराया और कहा, हे भिखारी, मेरे पास कोई धन नहीं है, मेरे राज्य की कोई सीमा नहीं है। इस छोटे से भिक्षा पात्र को भरने में क्या दिक्कत है। राजा ने नौकरों से अपने खजाने में सबसे अच्छे गहने मांगे और उन्हें भिक्षा का कटोरा भरने को कहा...
शाम होने पर भी भरता रहा... राजा का खजाना खाली था, अपने प्यारे राजा से शर्मिंदा नहीं था, इसलिए प्रजा द्वारा लाया गया उसके घर का धन भी गायब हो गया था। रात होते ही राजा गिर गया साधु के चरणों में और कहा, "महाराज, मुझे।" इस चरित्र को भरने के लिए पर्याप्त धन नहीं है। काश, मेरा दिन बर्बाद हो गया, साधु ने कहा। अगर मैंने आपको सुबह बताया होता तो मैं आगे बढ़ जाता। बर्तन को उल्टा करके उसने सारा धन उंडेल दिया और आगे बढ़ गया। राजा उसके पीछे दौड़ा और हाथ जोड़कर पूछा, हे प्रभु, मुझे एक ही बात बताओ। इस भिक्षा पात्र में मेरा सारा खजाना खाली हो गया, लेकिन वह भरा नहीं गया। इस भिक्षा पात्र की विशेषता क्या है?
भिखारी ने कहा, मैं भी नहीं जानता। मैंने इस भिक्षा के कटोरे को मानव खोपड़ी से बनाया है। कहा जाता है कि इसमें मनुष्य का मन होता है। और यह कुछ भी नहीं भरता है। !!"
सीख :- मनुष्य का मन ऐसा है कि वह किसी भी चीज से तृप्त नहीं होता।