⚜️जौहरी की मूर्खता⚜️


जौहरी की मूर्खता


        एक बार एक गांव में मेला लगा हुआ था| मेले में एक अनपढ़ आदमी ने कांच के सामान की दुकान लगा रखी थी| दुकान में रंग-बिरंगे अलग-अलग कांच के बने हुए सुंदर आभूषण और कई तरह के कांच के टुकड़े सजे हुए थे| लोग अलग-अलग दुकानों पर सामान देख रहे थे और खरीद रहे थे|  मेले में एक जौहरी भी आया|अचानक उसकी नजर उस दुकान में रखे हुए एक कांच के टुकड़े पर पड़ी जो सबसे ज्यादा चमक रहा था| जौहरी को देखते ही समझ में आ गया कि वह कांच का टुकड़ा एक मूल्यवान हीरा है|
उसने दुकानदार से पूछा:- यह कांच का टुकड़ा कितने का दोगे?
 दुकानदार बोला:-  20 रुपए| 
 जौहरी बोला:-  15 रुपए का दोगे? 
 दुकानदार ने मना कर दिया जोहरी नहीं सोचा थोड़ी देर घूम फिर कर आता हूं, हो सकता है वापस आने पर दुकानदार का मन बदल जाए थोड़ी देर बाद जोहरी जब वापस लौटा तो उसने देखा कि वह कांच का टुकड़ा दुकान से गायब था| यह सब देखते ही जोहरी को गुस्सा आ गया और उसने तुरंत दुकानदार से पूछा:- वह कांच का टुकड़ा कहां गया|
 दुकानदार बोला:- वह तो मैंने 25 रुपए में बेच दिया|
 जौहरी ने झुंझला कर कहा:- तुम बड़े मुर्ख हो| वह कांच नहीं, बल्कि बहुत कीमती हीरा था जिसकी कीमत 1 लाख रुपए थी|
 दुकानदार बोला: मूर्ख मैं नहीं, मूर्ख तुम हो| जब तुम्हें पता था कि वह कांच का टुकड़ा बहुत कीमती है फिर भी तुमने उसका मोलभाव किया और 15 रुपए पर अड़े रहे|
 यह सुनकर जोहरी को अपनी मूर्खता पर बहुत पछतावा हुआ|
 शिख:- अपने ज्ञान का सही समय और सही तरिकेसे उपयोग करे।