जौहरी की मूर्खता
एक बार एक गांव में मेला लगा हुआ था| मेले
में एक अनपढ़ आदमी ने कांच के सामान की दुकान लगा रखी थी| दुकान में रंग-बिरंगे अलग-अलग
कांच के बने हुए सुंदर आभूषण और कई तरह के कांच के टुकड़े सजे हुए थे| लोग
अलग-अलग दुकानों पर सामान देख रहे थे और खरीद रहे थे| मेले
में एक जौहरी भी आया|अचानक
उसकी नजर उस दुकान में रखे हुए एक कांच के टुकड़े पर पड़ी जो सबसे ज्यादा चमक रहा
था| जौहरी
को देखते ही समझ में आ गया कि वह कांच का टुकड़ा एक मूल्यवान हीरा है|
उसने दुकानदार से पूछा:- यह कांच का टुकड़ा कितने का दोगे?
दुकानदार बोला:- 20
रुपए|
जौहरी बोला:- 15
रुपए का दोगे?
दुकानदार ने मना कर दिया| जोहरी नहीं सोचा थोड़ी देर घूम फिर कर आता हूं, हो
सकता है वापस आने पर दुकानदार का मन बदल जाए| थोड़ी देर बाद जोहरी जब वापस लौटा तो उसने देखा कि वह
कांच का टुकड़ा दुकान से गायब था|
यह सब देखते ही जोहरी को गुस्सा आ गया और उसने तुरंत
दुकानदार से पूछा:- वह कांच
का टुकड़ा कहां गया|
दुकानदार बोला:- वह तो मैंने 25
रुपए में बेच दिया|
जौहरी ने झुंझला कर कहा:- तुम बड़े मुर्ख हो| वह
कांच नहीं, बल्कि
बहुत कीमती हीरा था जिसकी कीमत 1
लाख रुपए थी|
दुकानदार बोला: मूर्ख मैं नहीं, मूर्ख
तुम हो| जब
तुम्हें पता था कि वह कांच का टुकड़ा बहुत कीमती है फिर भी तुमने उसका मोलभाव किया
और 15
रुपए पर अड़े रहे|
यह
सुनकर जोहरी को अपनी मूर्खता पर बहुत पछतावा हुआ|
शिख:- अपने ज्ञान का सही समय और सही तरिकेसे उपयोग करे।